समास किसे कहते है, ये कितने प्रकार के होते है, उनका परिचय
समास - दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नये और सार्थक शब्द को समास कहते हैं ।
जैसे -
- कमलनयन - कमल के समान नयन
- यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
- देशाटन - देश में अटन
- रुपया-पैसा - रुपया और पैसा
समास के प्रकार
समास के बाद अब बात आती है उनके प्रकारों पर आइए जानते है यह कितने प्रकार के होते हैं
समास छः के प्रकार के होते हैं।
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास
- बहुब्रीहि समास
जैसे -
- यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
- यथासंभव - जैसा संभव हो
- यथामती - मती के अनुसार
- निडर - बिना डर के
- घर-घर - हर घर
- भर-पेट - पेट भर के
तत्पुरुष समास - जिस समास का दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं
जैसे -
- स्वर्ग प्राप्त - स्वर्ग को प्राप्त
- भयभीत - भय से भीत
- जल पिपासु - जल को पीने की इच्छा करने वाला
- वज्रपात - वज्र का पात
- हस्तलिखित - हस्त से लिखित
कर्मधारय समास - जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य-विशेषण अथवा उपमेय-उपमान में संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति आए उसे कर्मधारय समास कहते हैं
जैसे -
- लाल मिर्च - लाल है जो मिर्च
- पुरुषोत्तम - पुरुषों में है जो उत्तम
- महाजन - महान है जो जन
- नीलकंठ - नीला है जो कंठ
- सज्जन - सत है जो जन
द्विगु समास - जिस समास में पहला पद संख्यावाचक हो तथा दोनों पदों में विशेष्य-विशेषण का संबंध उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे -
- शताब्दी - सौ वर्षों का समूह
- सप्तर्षि - सात ऋषि यों का समूह
- चौराहा - चार राहों का समूह
- नवग्रह - नौ ग्रहों का समूह
- पंचतत्व - पांच तत्वों का समूह
द्वंद समास - जिस समास के दोनों पद प्रधान हो और विग्रह करने पर दोनों के मध्य 'और' 'तथा' 'अथवा' 'या', योजक शब्द लगे उसे द्वंद समास कहते हैं
जैसे -
- पाप पुण्य - पाप और पुण्य
- अन्न जल - अन्न और जल
- वेद पुराण - वेद और पुराण
- थोड़ा बहुत - थोड़ा और बहुत
बहुब्रीहि समास - जिस समाज का कोई भी पद प्रधान नहीं होता और दोनों पद मिलकर किसी अन्य शब्द (संज्ञा) के विशेषण होते हैं उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं
जैसे -
- महात्मा - महान है आत्मा जिसकी
- चतुर्भुज - चार है भुजाएं जिसकी अर्थात विष्णु
- त्रिनेत्र - तीन है नेत्र जिसके अर्थात शिव
- गजानन - गज के समान आनन है जिसका अर्थात गणेश
- पीतांबर - पीले हैं वस्त्र जिसके अर्थात कृष्ण
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