चक्र क्या है, ये कितने प्रकार के होते है उनका परिचय

चक्र क्या है

चक्र -  चक्र को संस्कृत में चक्का या पहिया कहते हैं. हमारे शास्त्र अथवा वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे शरीर में 114 तत्व उपस्थित हैं जिनमें से मुख्य सात चक्र हैं. 

कुंडली जागृत होकर जब सुषम्ना नाड़ी में गति करती है. तो शरीर में स्थित चक्रों का भेदन करती चलती है. यह चक्र गति से ही जागृत होते हैं.

चक्र क्या है, ये कितने प्रकार के होते है उनका परिचय

इन चक्रों की संख्या सात कही गई है। जो कि निम्नलिखित हैं.

  1.  मूलाधार चक्र
  2. स्वाधिष्ठान चक्र
  3. मणिपूरक चक्र
  4. अनाहत चक्र
  5. विशुद्ध चक्र
  6. आज्ञा चक्र
  7. सहस्त्रार चक्र

यही चक्र कुंडली शक्ति का मार्ग है. आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में विस्तार पूर्वक कुछ बातें.

सातों चक्रों का परिचय 

 मूलाधार चक्र - यह चक्र शरीर में गुदा मूल से दो अंगुल ऊपर और उपस्थ मूल से दो अंगुल नीचे होता है. इस प्रदेश को सिवनी कहते हैं. मूलबंध में इसी प्रदेश को दबाया जाता है. इसकी आकृति चार पंखुड़ियों वाले कमल के समान बताई जाती है. चिकित्सा विज्ञानी इसे हड्डियों मांस चमड़ी तथा केश उत्पत्ति और नियंत्रित करने वाली सभी नस-नाड़ियों का केंद्र मानते हैं. यह पचाये हुए भोजन के विसर्जित पदार्थों को बाहर निकालता है और पचाये हुए भोजन से रक्त निर्माण कर शरीर को पुष्ट बनाता है. इस चक्र में चेतना आने से वीर्य की स्थिरता बढ़ती है इसी चक्र पर दबाव पड़ने से वीर्य का स्खलन होता है. अतः स्तंम्भन शक्ति बढ़ाने वीर्य रक्षा के लिए मूलाधार चक्र में चेतना लाने का प्रयास करना चाहिए.

स्वाधिष्ठान चक्र - मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर पेड़ू पर इस चक्र का स्थान हैं. इसकी आकृति छह पंखुड़ियों वाले कमल के समान मानी गई है. शारीरिक दृष्टि से वीर्य, रज, चर्बी, मूत्र, तथा जलतत्व का उत्पादन एवं नियंत्रण इसी केंद्र से होता है. तथा इसमें चेतना पैदा होने पर ही मनुष्य विषयों को भोग सकता है.

वस्तुतः स्वाधिष्ठान चक्र भय, घृणा, क्रोध, हिंसा आदि क्रियाओं का स्थान है इस चक्र में चेतना लाकर इन्हें अभय प्रेम क्षमता और अहिंसा में परिवर्तित  किया जा सकता है.

मणिपूरक चक्र - मणिपूरक चक्र ठीक नाभि स्थान में स्थित होता है. इसकी आकृति उस पंखुड़ियों वाले पीले कमल के सामान बताई जाती है. या प्रमुखतः पाचन संस्थान का नियंत्रण केंद्र है. पूरे शरीर का विकास इसी केंद्र से संपन्न होता है. इसके आसपास ही शेष शरीर की रचना और विकास का कार्य चलता है। इसमें चेतना आने से सारे दे और मानसिक तनाव का निवारण होता है. प्राकृतिक रुप से यह चक्र आचार व्यवहार को नियमित करता है. अध्यात्मिक रूप में इससे श्रद्धा और विवेक का जन्म होता है यह चक्र अन्य सभी नाड़ी चक्रों के मध्य भाग में स्थिर रहता है.

अनाहत चक्र – यह चक्र ठीक ह्रदय पास स्तिथ होता है. इसकी आकृति बाराह पंखुड़ियों वाले सिंदूरी कमल के समान बताई जाती है यह शरीर की कांति और तेज का प्रतिनिधि है. इसे वायु तत्व का केंद्र भी माना जाता है. इसी चक्र के द्वारा रक्त प्रवाह प्रकोष्ठ शुद्धि और स्नायु संचालन आदि क्रियाएं होती हैं.

ह्रदय की सारी व्यवस्थाएं इसी चक्र के परामर्श से संपन्न होती है. मन के सभी भाव इसी चक्र के संपर्क रखते हैं. यहीं चक्र वह अंग है जो मानव में प्रेम, घृणा, क्रोध, ऊँच-नीच आदि के भाव उत्पन्न करता है. इस चक्र के जगृत करने से विचार सम्प्रेषण, दूरदर्शिता दूसरों के विचारों को पढ़ने आदि की शक्तियां स्वतः प्राप्त हो जाती है. अति इन्द्रिय घटनाओं की जानकारी भी इसी चक्र के जगृत होने का ही परिणाम होता है प्रणायम के अभ्यास से इस चक्र की शक्ति का विकास किया जा सकता है.

विशुद्ध चक्र – यह चक्र शरीर में कंठ स्थान के मूल में स्थित होता है. इसकी आकृति घ्रुम रंग के सोलह पंखुड़ियों वाले कमल के समान बताई गई है. यह आकाश तत्व का मूल स्थान है. इस चक्र का मुख्य कार्य स्वर का ज्ञान कराना और बोलने की शक्ति प्रदान करना है. इस चक्र के जागृत होने पर स्त्री-पुरुष को द्वेत भाव नष्ट हो जाता है. इस चक्र की सहायता से चित्त स्थिर होता है. वह इंसान जगत को भूलकर साधक का अंतर आत्मा से साक्षात्कार होता है. इस चक्र के जागृत होने पर अपूर्व आनंद का अनुभव होता है. इस चक्र के जागृत होने पर सभी समस्याएं, दुखः, क्लेश, द्वंद्व और विरोधाभास नष्ट हो जाते हैं. तारुण्य और उत्साह बनाए रखने में इस चक्र का विशेष महत्व होता है.

आज्ञा चक्र – इस चक्र का स्थान दोनों भौहों के बीच में होता है. यह सफेद रंग के दो पंखुड़ियों वाले कमल के सामान है. नेत्र जो कुछ देखना चाहते हैं. उसका संदेश इसी चक्र को प्राप्त होता है और चक्र संदेशों को हृदय तक पहुंचा देता है. इस में चेतना उत्पन्न करने से दीर्घायु प्राप्त होती है. शारीरिक दृष्टि से भी सभी शारीरिक और मानसिक प्रेरणाओं का केंद्र स्थान यही हैं. कुछ साधक इस चक्र को मानसिक चमत्कारों के लिए जागृत करते है. इसके जागृत होने का अर्थ है अहंकार की समाप्ति और ब्रम्हा की प्राप्ति इसे भगवान शिव का तीसरा नेत्र भी कहा गया है. विभिन्न चक्रों को अलग-अलग जागृत करने से जो दिव्यफल प्राप्त होते है. वे अकेले आज्ञा चक्र को जागृत करने से प्राप्त होते हैं.

सहस्त्रार चक्र – इस चक्र का स्थान तालू के ऊपरी भाग में होता है. इसकी आकृति रंग-बिरंगे प्रकाश युक्त एकहजार पंखुड़ियों वाले कमल के समान है. इस चक्र का शरीर के सभी भागों से संपर्क रहता है. इस चक्र का कार्य विभिन्न स्वादों का पता लगाना हैं. यह मुंह का स्वाद सही रखता और पाचन शक्ति में मदद करता है. ब्रह्मज्ञानी इसी चक्कर के द्वारा निर्वाण प्राप्त करते है. उसके पश्चात ना जन्म है ना मृत्यु.

हमारे इस लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत 
।। धन्यवाद ।।

Comments

Popular posts from this blog

Mahadev Status Photo In 2020

मुहावरे क्या होते हैं और कुछ मुहावरों के उदाहरण

Month Name In Hindi