कुँवर नारायण जी का जीवन परिचय

 जीवन परिचय

जीवन परिचय - कुंवर नारायण जी प्रसिद्ध कवियों में से एक माने गए हैं। तार सप्तक के कवियों में से भी उनका प्रमुख स्थान है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के जनपद में 19 सितंबर 1927 में हुआ आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में पाने के बाद वे लखनऊ चले गए और वहां से उच्चतम शिक्षा प्राप्त की।  कुछ समय तक 'युग चेतना' पत्रिका का संपादन भी किया। बाद में उन्होंने  चोकोस्लोवाकिया, पोलैंड, रूस तथा चीन का भ्रमण किया। वे 'आजकल', 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' पत्रिकाओं का संपादन भी करते रहे। कुंवर नारायण को 'आत्मजयी' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। और उन्हें बहुत से पुररस्करों से सम्मानित किया गया जैसे कुमारन पुरस्कार, प्रेम धन पुरस्कार, लोहिया सम्मान तथा राष्ट्रीय कवि सम्मान प्राप्त हुआ ।

रचनाएं

रचनाएं - कुंवर नारायण जी अज्ञेय द्वारा संपादित तृतीय सप्तक के प्रमुख कवि हैं तथा उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में काव्य रचनाएं लिखी है उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं - आत्माजयी,  चक्रव्यू (1956),  परिवेश हम तुम,  आमने सामने कोई दूसरा नहीं, इन दिनों आदि काव्य रचनाएं लिखी हैं।

साहित्यिक विशेषताएं

साहित्यिक विशेषताएं - कुंवर नारायण जी एक भृमणशील व्यक्ति होने के पाश्चात्य साहित्य का गम्भीरता पूर्वक अध्ययन किया है। इसीलिए उनका दृष्टिकोण पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। और दूसरी उनकी कविता में विचारपक्ष की प्रधानता देखी जा सकती है इसीलिए वह भावुकता को अपनी कविता में अधिक स्थान नहीं देते हैं। कवि ने अपनी संवेदना को प्रकट करने के लिए प्रतीकों का सहारा लिया है ।उनका विचार है कि आज का मानव एक ऐसा अभिमन्यु है जो विघटनकारी समकालीन समस्याओं से घिरा हुआ है। उनके काव्य की अन्य विशेषता यह है कि वे अपनी कविताओं में समकालीन समाज की यथार्थ झांकी प्रस्तुत करते हैं। कुंवर नारायण ने अपनी रचनाओं में मानवतावाद का भी वर्णन किया है सामाजिक चेतना को महत्व देते हुए रूढ़ियों व  जड़ परंपराओं का विरोध करते हुए दिखाई देते हैं।

भाषा शैली

भाषा शैली - कुंवर नारायण जी ने अपनी कविता के शिल्प को विशेष महत्व दिया है। उन्होंने प्रायः विषय अनुकूल भाषा का ही प्रयोग किया है। लेकिन उनके काव्य का भाषा साहित्य खड़ी बोली है । जिसमें अंग्रेजी उर्दू तथा फारसी शब्दो का मिश्रण भी देखा जा सकता है।  कुँवर नारायण जी के काव्यों में अलंकारों का प्रयोग स्वभाविक रुप में हुआ है। वे सर्वत्र मुक्तक छंद का ही प्रयोग करते हैं। उनके काव्य में अनुप्रास, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग देखा जा सकता है।

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